एस बी एस हिन्दी के लिये अनीता बरार के साथ बात करते हुए, श्री नानासाहेब शेंडकर बताते हैं कि कैसे उन्होंने अपनी फेक्टरी में लोकप्रिय प्लास्टर ऑफ पेरिस मूर्तियों के बजाय पेपर मैशे आइडल बनाने का फैसला किया।
श्री शेंडकर ने कहा, “मूर्ति विसर्जन के बाद सजावट आमतौर पर नदियों, तालाबों आदि को बंद कर देती है। इस रुकावट को रोकना बहुत महत्वपूर्ण है।”
- नाना साहेब शेंडकर ने जे जे स्कूल ऑफ आर्ट्स मुंबई से डिप्लोमा लिया
- उन्होंने 2001 में पेपर मैशे आइडल बनाने की शुरुवात की
- गणेश उत्सव पूरे भारत और विदेशों में मनाया जाता है।
जे जे स्कूल ऑफ आर्ट्स मुंबई से डिप्लोमा वाले एक कलाकार, श्री शेंडकर किसी भी व्यापारी की तरह हो सकते थे जो गणपति उत्सव के लिए मूर्तियाँ और सजावट करते हैं लेकिन अब वह सबसे अलग हैं। उनकी गणेश प्रतिमा पेपर मैशे से बनी है।
आर्ट्स का डिप्लोमा लेने के बाद, अपनी पैत्रक ज़मीन पर, लगभग 50 साल पहले गणेश जी की मूर्ति बनाने की फैक्ट्री स्थापित की थी। तब उनके कारखाने में लोकप्रिय प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियों को बनाया जाता था।
लेकिन 2001 में , पर्यावरण को धयान में रखते हुये उन्होंने अपने मौजूदा बड़े कारखाने को बंद करने का फैसला किया, और पर्यावरण अनुकूल मूर्तियाँ बनाने का निश्चय किया।श्री नानासाहेब कहते हैं, "मूर्तियों के लिए प्लास्टर ऑफ पेरिस का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता रहा है। दुर्भाग्य से यह आसानी से विघटित नहीं होती है और मूर्ति विसर्जन के एक साल बाद भी पानी में तैरती रहती है। जबकि पेपर मैशे से बनी मूर्तियाँ 3-4 घंटे में ही पानी में घुल सकती हैं। और तो और, यह वजन में भी बहुत हल्की होती हैं"।
Nanasaheb Shendkar Source: Nanasaheb Shendkar
वह कहते हैं कि मूर्ति विसर्जन के अलावा, उत्सव पर की गयी सजावट आदि भी नदियों, तालाबों आदि को दूषित कर देती है। इसको रोकना बहुत महत्वपूर्ण है।
नानासाहेब शेंडकर के साथ बातचीत सुनिये -
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पर्यावरण के प्रति जागरुकता जगाती गणेश प्रतिमायें
SBS Hindi
18/09/202110:18
गणेश उत्सव एक ऐसा त्योहार है जो पूरे भारत और विदेशों में मनाया जाता है। परंपरागत रूप से, चतुर्थी के दिन घरों, पंडालों में गणेश की मूर्तियों को लाया जाता है और फिर मूर्तियों को 10 दिनों के बाद यानि चतुर्दशी के दिन समुद्र, नदियों, झीलों या तालाबों में विसर्जित कर दिया जाता है।
परंपरागत रूप से, मूर्तियाँ मिट्टी से बनी होती थीं, जो कि अनुष्ठान के अनुसार पूजा के लिए उपयुक्त होती हैं। लेकिन समय के साथ, न केवल बनाई गई मूर्तियों का प्रकार बल्कि उनका आकार भी बदल गया है।मूर्तियों के अवशेष, पानी में उनके जहरीले रासायनिक रंग समुद्री जीवन सहित पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं। रासायनिक रंगों और रंगों में मरकरी, जिंक और लेड जैसे जहरीले तत्व होते हैं जिन्हें कैंसर के संभावित कारण के रूप में भी जाना जाता है।
Eco friendly Decoration Source: Nanasaheb Shendkar
श्री नानासाहेब कहते हैं कि कागज पर्यावरण के सबसे अनुकूल उत्पादों में से एक है। वह कहते हैं कि पर्यावरण को बचाने और संरक्षित करने के लिए वह बच्चों और मंडलों को यह भी सिखा रहे हैं कि पर्यावरण के अनुकूल सजावट कैसे करें।
उनका कहना है, " सभी को हाथ मिलाकर अपना काम करने की जरूरत है।"
उन्होंने गर्व से यह बताया कि इस दिशा में उनकी विनम्र शुरुआत के साथ, अब कई लोग आगे आए हैं और इस मुद्दे को उठाया है।
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