ऐसा सच में है. और ये दोनों पड़ोसी देश हैं भारत और पाकिस्तान. दोनों देश आम की एक वैरायटी रटौल पर दावा कर रहे हैं.
रटौल आम के पाकिस्तान पहुंचने की कहानी डॉ. राहत अबरार बताते हैं जिनके पूर्वज इस आम के पौधे को पाकिस्तान ले कर गए थे. डॉ. अबरार इस समय अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में उर्दू अकादमी के डायरेक्टर हैं. वह बताते हैं कि रटौल एक गांव है पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में. वही बागपत जहां से हिंदुस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह सांसद थे. ये आम रटौल में पैदा होता था. वहां इसके बगीचे थे. लेकिन 1947 में जब देश बंट गया तो रटौल के कुछ निवासी भी पाकिस्तान चले गए. वे अपने साथ इसी आम का एक पौधा ले कर गए. वही पौधा पेड़ बन गया और धीरे धीरे पाकिस्तान में फ़ैल गया. आज वहां रटौल आम का जलवा है. शुरुआत मुल्तान के बहावलपुर इलाके से हुई.
रटौल आम ने हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच मैंगो डिप्लोमेसी की भी शुरुआत की. पाकिस्तान के तत्कालीन शासक जनरल जिया उल हक ने भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री को रटौल आम की पेटी भेजी. इसकी तारीफ की और इसे पाकिस्तान का मशहूर फल बताया. पाकिस्तान ने रटौल आम के ऊपर अपने देश में डाक टिकट भी जारी कर दिया है. लेकिन इंदिरा गांधी को बाद में भारत में बताया गया कि या रटौल आम तो भारत का है.
ऐसा क्या ख़ास हैं इस आम में? रटौल आम बेहद स्वादिष्ट होता है. इस आम को कभी दुनिया का सबसे अच्छा आम बताया गया था. साल 1934 में नवाब अहमद सईद खान ऑफ़ छतारी एस्टेट इसे लन्दन एक प्रदर्शनी में ले गए थे जहां इसे 'बेस्ट मैंगो' का अवॉर्ड मिला. इसका छिलका बहुत पतला होता हैं. महक इतनी कि दो रटौल आम अगर एक कमरे में रख दिए जाएं तो पूरा कमरा महक जायेगा.
वैसे आज रटौल आम पाकिस्तान में भले मशहूर हो चुका हो लेकिन भारत में इसको अभी उतनी शोहरत नहीं मिल पाई है.