भारत में भले कुछ और जगह पर वायलिन बनता हो लेकिन रामपुर का वायलिन बेजोड़ माना जाता है. यूरोप से लेकर खाड़ी देश में इसकी सप्लाई होती है. भारत में भी महाराष्ट्र फिल्म इंडस्ट्री में इसकी सप्लाई होती है.
रामपुर में वायलिन बनाने की शुरुआत भी बहुत रोचक है. अंग्रेजो के ज़माने में सन 1942 में तब बॉम्बे से एक वायलिन खरीद कर फर्नीचर बनाने वाले एक कारपेंटर ने अपने बच्चे को लाकर दिया. उस बच्चे के भाई से खेलते खेलते वो वायलिन एक दिन टूट गया. इस पर उस बच्चे को दुःख हुआ. उस कारपेंटर के भाई ने बच्चे की ख़ुशी के लिए उस वायलिन को खोला और फिर मेहनत से मरम्मत करके नया जैसा बना दिया. बच्चे के चेहरे पर ख़ुशी आ गयी लेकिन इस प्रक्रिया में वहां अब वायलिन बनाना भी शुरू हो गया. ये एक नयी विधा और नया प्रयोग था. उनके बनाये वायलिन खूब पसंद किये जाने लगे.
आज उसी बच्चे हसीनुद्दीन के परिवार में वायलिन बनाने का काम चल रहा है. इस समय हसीनुद्दीन के पुत्र ज़मीरुद्दीन वायलिन बनाते हैं. उनके बनाये वायलिन खूब पसंद किये जाते हैं. वायलिन बनाना कोई आसान काम नहीं है. ये एक गणित की तरह है. जरा सी नाप जोख में चूक पूरा वायलिन ख़राब कर देती है. मेपल वुड ब्राज़ील से, हिमाचल प्रदेश की स्प्रूस वुड, एबोनी वुड सभी तरह की लकड़ी का इस्तेमाल होता है.
बात सिर्फ वायलिन की ही नहीं है. हजारो किलोमीटर दूर अरब में पांच हज़ार साल से एक संगीत वाद्ध बजाया जाता है. जिसको ऊद कहते हैं. ये वायलिन की ही तरह होता है लेकिन उससे कुछ छोटा होता है. आश्चर्य होगा जानकर कि ये ऊद यंत्र भारत में रामपुर से बनकर वहां जाता है. हजारो साल से ईजिप्ट में बजाये जाने वाला ये साज़ आज रामपुर में बन रहा है. पूरे भारत में ज़मीरुद्दीन ही अकेले ऐसे कारीगर है जो आज ऊद यंत्र बनाते हैं और अरब देशो को भेजते हैं.
तो अगली बार अगर कहीं आपको वायलिन की मधुर धुन सुनाई पड़े तो ध्यान रखियेगा वो आपके भारत देश के रामपुर में बना हुआ हो सकता है