कल्पना जब हकीकत होती है तो उमराव जान बन जाती है

Umrao Jaan Ada

Tomb of Umrao Jan Ada is constructed by Arun Singh Source: Supplied

कल्पना और हकीकत का फर्क कैसे मिटता है, यह जानना हो तो उमराव जान अदा की कहानी सुनिए. उमराव हुई हैं या नहीं, कोई नहीं जानता पर उनका ख्याल इतना मजबूत है कि अब तो उनका मकबरा भी बन गया है.


ग़ज़ल- दिल चीज़ क्या है आप मेरी जान लीजिये, तो आपने सुनी ही होगी! वैसे ये ग़ज़ल लिखी तो शहरयार ने है लेकिन मशहूर हुई जब फिल्म 'उमराव जान' में रेखा पर फिल्माई गयी.

फिल्म उमराव जान की ग़ज़लें दर्शकों की जुबां पर चढ़ गईं और उमराव जान लोगों के दिलों में उतर गईं लेकिन आज भी इस बात पर एकमत नहीं है कि उमराव जान हकीकत थीं या फिर किसी लेखक की कल्पना. लेकिन इस सबके बीच एक बात सामने आई है वो ये कि कभी कभी कल्पनाएं भी इतनी मज़बूत और सच के करीब पहुच जाती हैं कि वो हकीक़त लगने लगती हैं.

कुछ लोग उमराव जान को लेखक मिर्ज़ा हादी के उपन्यास की नायिका मानते हैं तो कुछ इसे हकीक़त. फिल्में भी कई बनीं. पहली फिल्म 50 के दशक में मेहंदी नाम से आई थी. फिर पाकिस्तान में भी 60 के दशक में एक फिल्म उन पर बनी. मुजफ्फर अली ने 80 के दशक में मशहूर फिल्म 'उमराव जान' बनाई जिसमें रेखा मुख्य भूमिका में थीं. जेपी दत्ता ने भी उमराव जान की कहानी पर फिल्म का निर्माण किया.

हकीकत हो या किस्से कहानी कुछ भी हो उमराव जान आज भी लोगों के दिल और दिमाग पर छाई हुई हैं. 26 दिसम्बर को उनकी बरसी भी मनाई गयी. अगर उमराव जान थीं तो उनकी कब्र भी होनी चाहिए. कम लोग जानते होंगे कि उनका मकबरा भी तैयार हो गया है. ये मकबरा बनाया हैं कलाकार अरुण सिंह ने बनारस में. अरुण सिंह वैसे तो बनारस में भारत रत्न शहनाई वादक बिस्मिल्लाह खान का मकबरा डिजाइन कर रहे थे. इसी बीच कब्रिस्तान फातमान में उन्हें एक कब्र बहुत टूटी फूटी हालात में दिखी. थोडा सफाई करने पर उस पर लिखे मिले उर्दू में कुछ शेर और बेगम उमराव जान अदा का नाम. अरुण ने थोड़ी रिसर्च करी और इस नतीजे पर पहुचे की ये कब्र उमराव जान की है. आस पास के लोग 26 दिसंबर को वहां आते और फूल चढाते. फिर अरुण ने उसको खूबसूरत शक्ल देना शुरू किया और आज वो मकबरा तैयार है.

लखनऊ और उसके आस पाक के इलाको में आम जनता के लिए उमराव जान का बचपन का नाम अमीरून था और उनका अपहरण हो गया था. उसके बाद वो तवायफ के कोठे पर लखनऊ पहुच गईं और नाम पड़ा उमराव जान. इसके बाद वो बहराइच और फिर बनारस में दफ़न हैं. उमराव जान के बारे में अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर सज्जाद मोहम्मद के अनुसार उमराव जान एक कल्पना मात्र हैं लेकिन इतनी सशक्त हैं कि सच के करीब पहुच गयी हैं.

हकीक़त कुछ भी हो लेकिन आज भी जब कानों में सुनाई पड़ता है - एक हम ही मय को आंखों से पिलाते हैं, कहने को तो दुनिया में मयखाने हजारो हैं- तब तब उमराव जान अपने आप याद आ जाती हैं.


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