कारवां गुज़र रहा है, कवि नीरज खड़े देख रहे हैं

4 Jan 2017 Aligarh :-Gopaldas neeraj padma bhushan With Manoj Aligadi Photo journalist, Journalist Faisal Fareed

4 Jan 2017 Aligarh, Padma Bhushan Gopaldas Neeraj. Source: Manoj Aligadi

हिंदी कवि और गीतकार गोपालदास नीरज 94 वर्ष के हो गए हैं. इस मौके पर पेश है उनसे एक विशेष बातचीत, उनके अस्पताल से घर लौटने के बाद...


स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से, लुट गए सिंगार सभी बाग़ के बबूल से

और हम खड़े खड़े बहार देखते रहे,  कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे

लगभग पचास साल बीत जाने के बाद भी फिल्म 'नयी उम्र की नयी फसल' का ये गाना आज भी लोगो को रुक कर ख़ामोशी से सुनने को मजबूर कर देता हैं. हर कोई इस गाने में अपनी गुज़ारे हुए लम्हे तलाशने लगता हैं जैसे इस गीत को उसी को ध्यान में रख कर लिखा गया हो.

ये है कवि गोपाल दास नीरज का जादू.

गीत ऐसा कि उसमें, तड़प, दर्शन, शब्द, सन्देश, भावना, ख्वाब, उम्मीद सब कुछ समाहित है.

पूरे हिंदुस्तान में शायद अब नीरज ही एक मात्र ऐसे कवि जीवित हैं जिनकी कविताएं, गीत आज भी उतनी ही मशहूर हैं जितने 60 और 70 के दशक में फिल्माए जाने के वक्त हुए थे. हर उम्र के लोग नीरज के गीतों के दीवाने हैं. उन्हें पदम् श्री और पदमभूषण दोनों पुरस्कार भारत के राष्ट्रपति से मिल चुके हैं और साथ में उत्तर प्रदेश सरकार का सर्वोच्च यश भारती पुरस्कार भी. यही नहीं लगातार तीन साल तक फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला.

4 जनवरी को नीरज का जन्मदिन था. 90 वर्ष पार कर चुके नीरज ने लोकप्रियता के नए आयाम तय किये. इटावा में जन्मे, एटा से पढ़ाई की, फिर टाइपिस्ट की नौकरी और बाद में अलीगढ़ में हिंदी के प्राध्यापक हुए और अलीगढ़ में ही बस गए.
4 Jan 2017 Aligarh :-Gopaldas neeraj padma bhushan,Photo Manoj Aligadi
Source: Manoj Aligadi
जब नीरज की कविताओं की शोहरत बढ़ने लगी तब उन्हें फिल्म इंडस्ट्री से बुलावा आया. साठ के दशक में उनका सफर शुरू हुआ जो बहुत ही सफल रहा. ऐसे गाने लिखे कि दशकों बीत जाने के बाद आज भी उनका क्रेज बरक़रार है. जैसे- लिखे जो ख़त तुझे, कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे, देखती ही रहो आज दर्पण न तुम, ऐ भाई ज़रा देखके चलो, रंगीला रे, बस यही अपराध हर बार करता हूं, मेरा मन तेरा प्यासा, अपने होठों की बंसी बना ले मुझे, आज मदहोश हुआ जाये रे मेरा मन, शोखियों में घोला जाये वगैरह वगैरह. सब गाने आज भी उतने ही सुने जाते हैं.

फ़िल्मी सितारे जैसे देव आनंद और राज कपूर और संगीतकार जैसे शंकर जयकिशन और एस डी बर्मन ये तो जैसे नीरज के लिए बने थे. इनके साथ नीरज ने खूब काम किया. शायद इन सबकी ट्यूनिंग नीरज से सबसे अच्छी थी. इनके न रहने की वजह से भी नीरज वापस आ गए.

इतनी शोहरत मिली और अनगिनत पुरस्कार. बहुत से काव्य संग्रह प्रकाशित हुए लेकिन अब नब्बे पार कर चुके नीरज आजकल के कवियों से थोडा व्यथित हैं. उनके हिसाब से सिर्फ लोकप्रियता के पीछे नहीं भागना चाहिए.

इतनी बुलंदी पर पहुचने के बाद भी नीरज ने कभी अपने करीबियों को गलत बढ़ावा नहीं दिया. इनके पुत्र प्रभात भी कवि हैं, गा भी लेते हैं लेकिन कभी नीरज ने इनको प्रमोट नहीं किया.

इस नए साल पर नीरज अस्पताल से वापस आये हैं, उनका 94वां जन्मदिन मनाया जा रहा हैं. शरीर भले थोड़ा कमज़ोर हो गया हो, लेकिन वो आज भी गुनगुना लेते हैं और युवाओ के लिए सन्देश देते हैं.

वैसे खुद अपने बारे में और आज के हालात पर उनकी ही दो लाइन सटीक बैठती हैं-

इतने बदनाम हुए हम तो इस ज़माने में, लगेंगी आपको सदियां हमें भुलाने में.

न पीने का सलीका न पिलाने का शऊर, ऐसे भी लोग चले आये हैं मयखाने में.


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