ऐतिहासिक रूप से 1952 में ढाका विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों और कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा अपनी मातृभाषा का अस्तित्व बनाए रखने के लिए एक विरोध प्रदर्शन किया गया था । छात्रों का वह विरोध प्रदर्शन हिंसात्मक रूप में बदल गया था और कई लोगों की मृत्यु हो गयी थी।
मुख्य बातें
* यूनेस्को के द्वारा 17 नवंबर 1999 को यह निर्णय लिया गया था
* दुनिया भर की 20 सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में 6 भारतीय भाषाएं हैं जिनमें हिंदी तीसरे स्थान पर है
* यह दिन, बांग्ला देश में भाषा के संरक्षण के प्रश्न को ले कर छात्रों के आंदोलन और बलिदान की स्मृति से जुड़ा हुआ है
मेलबर्न में CQV यूनिवर्सिटी में इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट में प्रमुख डा सुभाष शर्मा, जो साहित्य संध्या का संचालन भी करते हैं , वह कहते हैं कि आज के समय में सौहाद्र की बहुत अधिक आवश्यकता है। संस्कृतियों की विविधता और उसकी भौगोलिक स्थिती, परम्पराओं को साहित्य आदि का आस्तित्व बनाये रहना और उनके प्रति सम्मान रखने की आवश्यकता है और यही अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने का एक बड़ा उद्देश्य है. संस्कृतियों की विविधता और उनकी रचनात्मक अभिव्यक्ति के विभिन्न रुपों को समझना, उनका आस्तित्व बनाये रहना और उनके प्रति सम्मान दिखाना, इस दिवस का एक बड़ा उद्देश्य है।
वह कहते हैं कि अपनी मातृभाषा का तिरस्कार नहीं किया जाना चाहिए ब्लकि उसपर गर्व करना चाहिये। भाषा संचार का साधन है और भाषा ही संवाद के द्वारा लोगों को आपस में जोड़ कर सहयोग की ओर ले चलती है। इसलिये भाषा का प्रयोग ही भाषा के अस्तित्व और उसकी शक्ति को बनाये रखता है.।
भाषा एक ऐसी अनोखी मानवी रचना है, जिसके कारण ही हमारी जीवन शैली सुचारू रूप से चलती रहती है। यह न केवल अभिव्यक्ति का साधन है ब्लकि इसी की वजह से हम कह सकते हैं कि हम कल्पना की उड़ान भी बरते हैं। आज जब कई भाषायें लुप्त हो रहीं हैं जिसकी वजह से कई संस्कृतियाँ भी लुप्त होने की कगार पर आ रही हैं, ऐसे में यह दिन जीवन में भाषा के महत्व के बारे में सोचने को मजबूर करता है। दुनिया में भाषा विविधता व बहुभाषिता बरकरार रहे, इस दिन का यही खास उद्देश्य है।
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