ऑस्ट्रेलिया में अपनी छाप छोड़ते भारतीय ऑस्ट्रेलियाई वालंटियर

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Source: Supplied

5 दिसंबर को इंटरनेशनल वालंटियर डे मनाया जाता है। आपकी मुलाकात कराते है भारतीय ऑस्ट्रेलियाई समाज के वालंटियर्स से जो अद्भुत काम कर रहे हैं।


ऑस्ट्रेलिया के भारतीय समुदाय के अनेक लोग वालंटियर के तौर पर गज़ब का काम भी कर रहे है। 

ऐसे ही निस्वार्थ काम करने वालो में शामिल हैं मेलबोर्न के ऋषि प्रभाकर, नैंसी लुम्बा और कपिल ठक्कर। 

ऋषि प्रभाकर करीब 20 साल पहले भारत से ऑस्ट्रेलिया अंतराष्ट्रीय स्टूडेंट के तौर पर आए थे। 

वे मेलबोर्न के पश्चिमी इलाके के चैरिटबल हॉस्पिटल के लिए चंदा इक्कठा करने के काम में लगे हैं।
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“जब मैं इस शहर में नया था तो अनेको लोगों ने मेरी मदद की और मुझे सफलता की सीढ़ी चढ़ने का रास्ता दिखाया, अब मैं इसे अपना फ़र्ज़ मानता हूँ कि मैं भी समाज के काम आ सकूँ”

ऋषि कहते हैं कि वे हिन्दू समाज के वसुधैव कुटुम्बकम के सिद्धांत का पालन करते हैं। 

दूसरी तरफ कपिल ठक्कर विक्टोरिया मल्टीकल्चरल समाज की सामाजिक आवश्कताओं के विकास के लिए काम करते हैं। 

इस साल विक्टोरियन मल्टीकल्चरल कमीशन ने उन्हें उनके वालंटियर के तौर पर किये काम के लिए मेरिटोरियस सर्विसेज़ अवार्ड से सम्मानित किया। 

श्री ठक्कर का कहना है कि समाज के लिए काम करना उनके लिए नया नहीं है, उनके भारत की राजनीति से जुड़े परिवार ने उन्हें ऐसा करने के लिए प्रेरित किया।
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“मेरे लिए सबसे पहले परिवार और समाज का स्थान है, यदि मैं किसी के जीवन में थोड़ी से मुस्कान ला पता हूँ तो मैं अपनी कोशिशों को सफल समझूंगा।”

नैंसी लुम्बा मेलबोर्न शहर इंजीनियरिंग कंसलटेंट के तौर पर काम करती हैं लेकिन उनका मन माइग्रेंट महिलाओं को नई दिशा देने के काम में लगता है।
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“क्या आप माइग्रेंट महिलाओं को नए परिवेश में खुद को स्थापित करने की जद्दोजेहद समझते? मैं उनकी क्षमताओं को जानती हूँ और बस उन्हें दिशा दिखाती हूँ। 

जब साल दो साल बाद मैं उन्हें अपने कार्य क्षेत्र में सफलता की तरफ कदम उठता देखती हूँ तो समझ आता है कि इससे बेहतरीन अहसास हो ही नहीं सकता। 

 

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