ऑस्ट्रेलिया इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ एंड वेलफेयर की 2022 की रिपोर्ट बताती है कि ऑस्ट्रेलिया में 4 लाख से अधिक लोग डिमेंशिया से जूझ रहे हैं। इसमें अल्जाइमर सबसे आम प्रकार का डिमेंशिया है जिससे याददाश्त, सोचने और व्यवहार संबंधी समस्याएँ आती हैं। अल्ज़ाइमर के अलावा डिमेंशिया के दूसरे प्रमुख प्रकार हैं वस्कुलर डिमेंशिया, फ्रंटोटेम्पोरल डिमेंशिया, लुई बॉडी डिमेंशिया आदि।
मानसिक स्वास्थ्य पेशवर तथा मनोरोग सामाजिक कार्यकर्ता डा उपासना बरुआ ने बताया कि डिमेंशिया सिर्फ यादाश्त खोना ही नहीं है , यह उससे भी कहीं ज़्यादा है। यह संज्ञानात्मक क्षमताओं को प्रभावित करता है और भ्रम और भटकाव की ओर ले जाता है।
उन्होंने समझाया कि अल्ज़ाइमर के बढ़ने की दर हरेक व्यक्ति में अलग होती है। व्यक्ति को चीजों को याद रखने और किसी बात को समझने में परेशानी हो सकती है। वह अपना कंट्रोल खोने लगते हैं। इसके परिणामस्वरूप वह पूछताछ या चर्चा दोहराते रहते हैं। आवश्यक है कि उनकी इस स्थिति को समझा जाये और वाद-विवाद में न उलझे और शांत रहें ।
डिमेंशिया से ग्रस्त लोगों के लिए, याददाश्त, स्वतंत्रता और रिश्तों का खो जाना बहुत तनावपूर्ण हो सकता है। ऐसे में उनसे जोर से बात बिल्कुल नहीं करें और न ही उनसे बहस करें। व्यक्ति के प्रति दयालु और विनम्र रहें। उन्हें सुरक्षित महसूस करायें।मानसिक स्वास्थ्य पेशवर तथा मनोरोग सामाजिक कार्यकर्ता डा उपासना बरुआ
There are approximately 10 million new cases of dementia each year. Source: Anadolu / Anadolu/Anadolu Agency via Getty Images
क्या आप मनोभ्रंश के जोखिम को कम कर सकते हैं?
बरुआ ने लेंनसेट की हालिया रिपोर्ट का हवाला देते हुये बताया कि रिपोर्ट में 14 ऐसे परिवर्तनीय जोखिम कारकों पर ध्यान दिलाया गया है जिससे डिमेंशिया के मामलों को रोका जा सकता है या उनमें देरी की जा सकती है।
इन कारकों में शिक्षा का निम्न स्तर, श्रवण दोष, उच्च रक्तचाप, धूम्रपान, मोटापा, अवसाद, शारीरिक निष्क्रियता, मधुमेह, अत्यधिक शराब का सेवन; कोलेस्ट्रॉल, दृष्टि हानि मस्तिष्क की चोट, वायु प्रदूषण और सामाजिक अलगाव की बात है।
Mental Health professional Dr Upasana Baruah
पौष्टिक आहार खाना, धूम्रपान न करना, शारीरिक रूप से सक्रिय रहना, पर्याप्त नींद लेना, हृदय स्वास्थ्य का प्रबंधन करना और मानसिक रूप से उत्तेजक गतिविधियाँ करना, इन सभी से फर्क पड़ता है। यह परिवर्तनीय कारक हैं।
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डा बरुआ ने कहा कि यह भी सच है कि देखभाल करना भी एक तनावपूर्ण काम है, लेकिन फिर भी उनके साथ बहुत ही धैर्य के साथ, शांत रहकर उनकी बात सुनें और अपनी बात करनी चाहिये।
"उनके लिये सहानुभूति की भावना रखें। उनसे असहमत न हों, बहस न करें ।"
उन्होंने याद दिलाया कि इस रोग से ग्रस्त लोगों में एक समान लक्षण नहीं होंगे; किसी व्यक्ति में कुछ लक्षण नज़र आ सकते हैं, तो किसी अन्य व्यक्ति में कोई और लक्षण नज़र आ सकते हैं। किसी को भ्रम की स्थिति हो सकती है तो किसी के स्वभाव या व्यवहार में बदलाव हो सकता है।
डा उपासना बरुआ सलाह देती हैं कि शुरुआत में ही सटीक निदान प्राप्त करना महत्वपूर्ण है।
"क्योंकि इससे उपलब्ध उपचारों का लाभ मिलने की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं, जिससे जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है और सहायक सेवायें सही सपोर्ट मिल सकता है। "
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अल्ज़ाइमर और लगातार बढ़ने वाले अन्य डिमेंशिया के लक्षणों को, व्यक्ति द्वारा अनुभव किए जाने से पहले ही दोस्त और परिवारजन देख सकते हैं। यदि आप या आपका कोई परिचित डिमेंशिया के संभावित लक्षणों का अनुभव कर रहा हो तो यह महत्वपूर्ण है कि कारण का पता लगाने के लिए चिकित्सीय मूल्यांकन करवाएँ।
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अस्वीकरण: इस साक्षात्कार में व्यक्त की गई जानकारी सामान्य प्रकृति की है। यह जानकारी आपकी व्यक्तिगत परिस्थितियों के लिए उपयुक्त नहीं हो सकती है । अपनी स्वास्थ्य स्थिति पर स्पष्ट सलाह के लिए अपने डाक्टर या स्वास्थ्य सलाहकार या स्वास्थ्य विशेषज्ञ से संपर्क करें।
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