भारत सरकार के ‘पद्मभूषण’ सम्मान से अलंकृत सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई 1900 ई को उत्त्तराखंड के कौसानी जिले में हुआ था। प्रकृति की गोद में पले बड़े पंत जी के कवि मन को उनके आस पास फैली प्राकृतिक नैसर्गिक सुन्दरता ने संगीतमय शब्दों का रूप दे दिया।
आकर्षक व्यक्तित्व के धनी सुमित्रानंदन पंत के बारे में एक बार जाने माने साहित्यकार राजेन्द्र यादव ने कहा था कि 'पंत अंग्रेज़ी के रूमानी कवियों जैसी वेशभूषा में रहकर प्रकृति केन्द्रित साहित्य लिखते थे।'
और भारत के जाने माने साहित्यकार डा हरीश नवल बताते हैं, "सुमित्रा नंदन पंत का व्यक्तित्व अत्यंत आकर्षक था। वह सुकुमार हैं, यह उन्हें विशेषण दिया जाता है। प्रकृति के तो वह चितेरे थे ही।"
एस बी एस हिन्दी के साथ बातचीत करते हुये डा हरीश नवल, जिन्हें युवा ज्ञानपीठ पुरस्कार, भारत सरकार के गोविन्द बल्लभ पंत पुरस्कार के अलावा १३ राष्ट्रीय और ८ अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं, उन्होंने पंत जी की रचना शैली पर प्रकाश डाला और पंत जी के साथ व्यक्तिगत रूप से समय बिताने के अनुभव को भी साझा किया।
Dr Harish Nawal Source: Supplied / Dr Harish Nawal
पंत के काव्य की शैली के लिये डा नवल बताते हैं कि प्रकृति, प्रेम सौदर्य राष्ट्रप्रेम रहस्यवाद, वेदना, प्रकृति का मानवीकरण आदि पंत की कविताओं की विशेषता बनी है।
पंत की कविता 'बादल' की कुछ पंक्तियाँ सुनाकर, डा नवल ने स्पष्ट किया कि पंत की कविता में कैसे मानवीकरण है।
पंत नये तरह से विशेषण का प्रयोग करते थे। और नये नये शब्दों की रचना करते थे। जैसे तुतला भय, गंध गुंजित, नील झंकार , मूर्छित आतव आदि, यानि वह अपने शब्दों से प्रकृति का मानवीकरण कर देते थे। तो देखना पड़ता है कि वह क्या प्रतीक देना चाहते हैं, बिंब क्या बन रहा है।डा हरीश नवल, हिन्दी साहित्यकार
कहा जाता है कि पंत बचपन में नेपोलियन से इतने प्रभावित थे कि उनकी तस्वीर देखकर उन जैसे बाल रखने का निर्णय कर लिया और डा नवल जी ने बताते हैं कि चूंकि वह रामायण के लक्ष्मण से प्रभावित थे तो अपना नाम जो पिता ने नाम रखा था गुसाईं दत्त , उसे बदल कर स्वयम् को सुमित्रानंदन पंत बना लिया।
भारत में जब टेलीविजन का प्रसारण शुरू हुआ तो उसे भारतीय नाम दूरदर्शन पंत जी ने दिया था। समकालीन साहित्यकारों में वह जाने माने कवि श्री हरिवंशराय बच्चन के बहुत करीब थे। और
भारतीय फ़िल्मों के महानायक अमिताभ बच्चन का नामकरण भी उन्होंने ही किया था।
Prominent writer and poets of Hindi Literature (left to right) Sri Harivanshrai Bachchan, Sri Sumitranandan Pant and Pt Narendra Sharma Source: Supplied / Ms Lavanya Shah (Daughter of noted poet Pt Narendra Sharma)
यह कहते हुये कि "उनकी भाषा में मैत्री और अभूतपूर्व लय का संगम है, संगीत का एक नाद है", डा नवल ने पंत की कविता 'मौन निमंत्रण' की कुछ पंक्तियाँ भी दोहरायीं-
स्वर्ण,सुख,श्री सौरभ में भोर
विश्व को देती है जब बोर
विहग कुल की कल-कंठ हिलोर
मिला देती भू नभ के छोर ;
"पंत के शब्द छोटे और असंयुक्त वर्ण वाले होते हैं", डा नवल ने ध्यान दिलाया।
पंत कोमल भावनाओं और सौंदर्य के कवि समझे गए किंतु यथार्थ से सामना होने पर जीवन के प्रति उनका यथार्थपरक और दार्शनिक दृष्टिकोण विकसित हुआ।
(sitting on stage from left to right) Shri Bhagwati Charan Verma, Shri Amrit Lal Nagar, Shri Sumitranandan Pant and Pt Narendra Sharma Source: Supplied / Ms Lavanya Shah (Daughter of poet Pt, Narendra Sharma)
ताजमहल को देखकर बहुत सी रचनायें लिखी गयी, किसी ने उसे 'प्रेम का प्रतीक कहा तो किसी ने उसकी सुन्दरता पर लिखा लेकिन पंत जी की दृष्टि ने उसे एक अलग रूप में देखा। यह बहुत ध्यान देने योग्य है। वह कहते हैं कि 'हाय! मृत्यु का ऐसा अमर अपार्थिव पूजन? जब विषण्ण,निर्जीव पड़ा हो जग का जीवन; संग सौध में हो श्रृंगार मरण का शोभन; नग्न, क्षुधातुर, वास-विहिन रहें जीवित जन ? मानव! ऐसी भी विरक्ति क्या जीवन के प्रति? आत्मा का अपमान, प्रेत और छाया से रति?'डा हरीश नवल, हिन्दी साहित्यकार
पंत ने काव्य में मानवीय प्रतिष्ठा और मानव-जाति के भावी विकास में दृढ़ विश्वास रखते हुए मानवतावादी दृष्टि को सम्मानित स्थान दिया।
उन्होंने मानव को सुंदरतम कृति कहा- ‘सुंदर है विहग, सुमन सुंदर, मानव तुम सबसे सुंदरतम।’ उनका मानना था कि देश, जाति, वर्ग में विभाजित मनुष्य की केवल ‘मानव’ के रूप में पहचान हो।
Statue of Hindi litterateur Sumitra Nandan Pant at his birthplace Kausani in Uttarakhand, India Source: Supplied / Alka Sinha
Sumitranandan Pant Museum in Kausani Credit: Wikimedia Commons/anil jaiswal CCA 3.0
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साहित्य में विशिष्ट योगदान के लिए सुमित्रानंदन पंत को 1960 में ‘कला और बूढ़ा चाँद’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया। और 1968 में ‘चिदंबरा’ के लिए भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया और इसके अलावा “लोकायतन” के लिए उन्हें सोवियत रूस नेहरू अवार्ड भी दिया गया था।
1961 में पद्मभूषण से सम्मानित छायावादी दौर के इस महत्वपूर्ण स्तंभ सुमित्रानंदन पंत का देहावसान 28 दिसंबर, 1977 को एक घातक दिल के दौरे से हुआ। तब श्री हरिवंश राय बच्चन का कथन था कि सुमित्रानंदन पंत की मृत्यु से छायावाद के एक युग का अंत हो गया है। दिसम्बर 2015 में, भारत में उनके चित्र के साथ एक डाकटिकट भी जारी किया गया।
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