हिंदी भाषा का भारतीय संस्कृति और सभ्यता के प्रति योगदान, उसकी जीवंतता और समाज से इसके गहरे संबंध को दर्शाते हुये भारत के कई नेताओं और साहित्यकारों ने काफी कुछ कहा और लिखा है।
सभी अपने विचारों और अपनी रचनाओं के माध्यम से इस बात का ओर ध्यान दिलाते हैं कि हिन्दी केवल एक संवाद का माध्यम नहीं है, बल्कि यह भारत की संस्कृति और परंपराओं का अभिन्न हिस्सा है।
भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद का कथन था, “जिस देश को अपनी भाषा और साहित्य का गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता।”
भारत के राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर कहते हैं कि “हिंदी भाषा नहीं, यह आत्मा है भारतीयता की।”
इसी तरह मैथिलीशरण गुप्त कहते हैं कि “हिंदी में वह शक्ति है, जो देश को एक सूत्र में पिरो सकती है।”
हिन्दी के लिये जाने माने नेताओं और साहित्यकारों के कुछ विचारों को सुनते हुये, इस पॉडकास्ट में सुनिये भारत के कवि डॉ प्रखर दीक्षित की एक पूरी कविता की संगीतमय रेडियो प्रस्तुति।
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