फरहान शाह एक सूफी गायक हैं और कुछ दिन पहले ही एडिलेड में आयोजित 'जयपुर लिटरेचर फैस्टिवल' में एक संगीत भरी शाम सजाकर लौटे हैं. वहां पर अपनी पेशकश के बारे में बात करते हुए वो कहते हैं कि वो खुशकिस्मत हैं कि इस साहित्य समारोह में उन्हें मौसिकी और सूफी संगीत को लोगों तक पहुंचाने का मौका मिला वो बताते हैं कि उन्होंने सुबह सवेरे सुने जाने वाले संगीत को इस आयोजन में तवज्जो दी.इस सवाल पर कि क्या बदलते दौर में ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने के लिए सूफ़ी गायकी को भी बदलने की ज़रूरत है? फ़रहान कहते हैं कि सूफी गायकी एक सदाबहार फूल है. वो कहते हैं
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सूफ़ी गायकी, उसके क़ायदे, उसके प्रिंसिपल, उसकी पॉइट्री (कविता) नहीं बदलते हैं लेकिन दौर बदलने के साथ लोगों का टेस्ट, लोगों के समझने की शक्ति बदलते रहती है.
ज़ाहिर है फ़रहान मानते हैं कि सूफी संगीत को सुनाने के तरीकों में भी कुछ बदलाव होते रहते हैं. और दूसरे तरीके के संगीत के साथ सूफी संगीत का मेलजोल भी बढ़ रहा है.फरहान कहते हैं कि ऑस्ट्रेलिया में लोगों की सूफी गायकी को लेकर समझ के वो क़ायल हैं. वो कहते हैं कि न केवल यहां लोगों को गायकी की समझ है बल्कि उसके इतिहास और संदेशों से भी वो अच्छी तरह वाक़िफ हैं.
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फरहान मानते हैं कि संगीत की इस विधा को हर जगह शामिल किए जाने की ज़रूरत है क्योंकि ये केवल संगीत ही नहीं बल्कि मानवता का संदेश भी है.