बाप्स संस्था द्वारा आयोजित इस अन्नकूट कार्यक्रम के कई पहलू रहे. लेकिन अन्नकूट के बारे में बताते हुए संस्था के कार्यकर्ता प्रफुल्ल जेठवा ने बताया कि अन्नकूट का अर्थ है अनाज का पर्वत और ये न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ा है बल्कि इसके सामाजिक मायने भी हैं. दरअस्ल भारत में आषाढ़ की बारिश के बाद हुए अनाज को अपने लिए इस्तेमाल करने से पहले किसान अपने आराध्य को इसे अर्पण करते हैं.
आयोजन बहुत बड़ा था और इसका प्रबंधन लाजवाब. तो ज़ाहिर है ये सवाल तो बनता था कि आखिर स्वयंसेवकों के दम पर कैसे ये संभव हो पाया. प्रफुल्ल बतातें हैं कि इसके लिए करीब 33 अलग अलग विभाग बनाए गये. और फिर स्वयंसेवकों को ज़िम्मेदारी दी गई. जिसमें 1500 से ज्यादा व्यंजन बनाना 200 से ज्यादा केक, पार्किंग, आगंतुकों का नियंत्रण उनका भोजन आदि प्रमुख थे.
प्रफुल्ल कहते हैं कि इस अन्नकूट में पूरी दुनिया के शाकाहारी व्यंजन रखे गये हैं साथ ही भारत के विभिन्न राज्यों के व्यंजनों को भी शामिल किया गया जो अनेकता में एकता का संदेश देता है.अन्नकूट में आस्था और संस्कृति के रस के बीच कुछ नौजवानों ने दुनिया को वसुधैव कुटुम्बकम का संदेश देने का सार्थक प्रयास भी किया और इसके लिए उन्होंने एक प्रदर्शनी का सहारा लिया. जिसमें न केवल सामाजिक एकता को मानवता को आगे ले जाने का सूत्र बताया गया था बल्कि एक घर के अलग-अलग कमरों के जरिए पारिवारिक मूल्यों पर भी ध्यान देने का आग्रह किया गया था.
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इतना ही नहीं ये युवा लोगों को स्वच्छता और कूड़ा नियंत्रण का भी संदेश देते हैं. एक युवा छात्रा चार्मी ने बताया कि इस संस्था से जुड़े लोग कूड़ा नियंत्रण के लिए भी योगदान देते हैं
प्रफुल्ल जेठवा कहते हैं कि इस आयोजन के आस्ट्रेलिया के बहुसांस्कृतिक समाज के लिए भी बहुत मायने हैं. क्योंकि यहां विभिन्न कलाकृतियों के माध्यम से दुनिया को वसुधैव कुटुम्बकम और अनेकता में एकता का संदेश दिया गया है.